अक्षय पात्र रसोई, मंदिर और गौशाला का वैदिक सूत्रों द्वारा वास्तु: एक आत्मिक संतुष्टिकारक अनुभव
Vastu Project of Akshay Patra Kitchen, Temple and Gaushala: A True Satisfying Experience
वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) में दिशाओं (Directions) का बहुत महत्व
माना गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, दिशाएं ही व्यक्ति का मंगल और अमंगल तय करती हैं। वास्तु
का पालन करने से जहां सुख-समृद्धि बनी रहती है वहीं, वास्तु (Vastu) की अनदेखी संकट लाती है।
प्राचीन काल से ही किसी भी धर्म के लोग सामूहिक रूप से एक ऐसे स्थान पर प्रार्थना करते रहे हैं,
जहां पूर्ण रूप से ध्यान लगा सकें, मन एकाग्र हो पाए या ईश्वर के प्रति समर्पण भाव व्यक्त किया
जाए। इसीलिए मंदिर निर्माण में वास्तु का बहुत ध्यान रखा जाता था।
इसी प्रकार वास्तु के अनुसार रसोई का निर्माण करते समय कई बातें बेहद अहम होती हैं और उन पर अमल
किया जाना भी जरूरी होता है। इसमें सबसे पहले चूल्हे के लिए सही स्थान का चुनाव किया जाता है।
उसके बाद दरवाजों और खिड़कियों के लिए सही दिशा का भी ख्याल रखना जरूरी है। इसके साथ ही साथ रसोई
के चूल्हे, गैस सिलेण्डर, सिंक, फ्रिज और दूसरे इलैक्ट्रानिक गेजेट्स का भी सही जगह पर होना बेहद
जरूरी है।
ये ही रसोई अगर किसी प्रकार के सामूहिक भोज (परसादी, लंगर, रेस्टौरेंट, कैन्टीन इत्यादि) के लिए
प्रयुक्त होती हो, तो उसका वास्तु ना केवल चुनौतीपूर्ण होता है, वरन अत्यंत संवेदनशील भी हो जाता
है।
ऐसा ही एक चुनौतीपूर्ण वास्तु परियोजना पर मुझे गत कई वर्षों से कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ
है। विगत 12 वर्षों से भी अधिक समय से, राजस्थान के लगभग 10 जिलों में अक्षय पात्र फाउंडेशन
द्वारा संचालित 15 सामुदायिक रसोई, उनसे सम्बद्ध मंदिरों और गौशालाओं का वास्तु, वैदिक वास्तु
शास्त्र के गूढ सूत्रों के प्रयोग व व्यावहारिक अभ्यास को समाहित रखते हुये कर रहा हूँ।
जयपुर स्थित अक्षय पात्र कैंपस और हिंगोनिया गौशाला का वास्तु भी इसी कड़ी मे मेरे द्वारा किया गया
हैं। अक्षय पात्र मंदिर का जब से निर्माण प्रारम्भ हुआ है, तभी से इंजीनियरों द्वारा बनाए गए कई
डिज़ाइन्स, वैदिक वास्तु शास्त्र के सूत्रों के आधार पर रिवाइज किए गए। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत
राजस्थान में 15 अलग-अलग जगह पर बनी हुई अक्षय पात्र रसोईयों के वास्तु करने का उत्तरदायित्व का
वहाँ मेरे द्वारा किया गया हैं। बीकानेर की किचन का वास्तु 2018 में किया था।
वर्ष 2017 व 2018 में हिंगोनिया गौशाला का वास्तु का उत्तरदायित्व भी मैंने वहन किया है। यह
गौशाला 200 एकड़ में फैली हुयी हैं। जब फाउंडेशन ने जयपुर नगर निगम से हिंगोनिया गौशाला को लिया था
तब यहाँ 8500 गाये थी, और आज यहाँ 20000 से अधिक गायें हैं। इसी परिसर में एक चिकित्सालय भी स्थित
है। गाय के गोबर (Cow Dung) को प्रोसेस कर के कई तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं, जिनके लिए छोटे बड़े
कई संयत्र और मशीने इसी परिसर में स्थापित की गयी है। दूध निकालने का एक ऑटोमैटिक सिस्टम भी यहाँ
स्थापित है। इस प्रकार इस पूरे परिसर में गायों के बाड़े, कर्मचारियों के रहने की जगह, रसोई, मशीन
व अन्य संयन्त्रों का स्थानन, गोबर के उत्पाद व दूध की प्रोसेसिंग यूनिट, चारे के गोदाम, अन्य
स्टोरेज, स्नानघर, शौचालय आदि जरूरतों का ध्यान रखते हुये इतने बड़े परिसर का वास्तु, वैदिक
सूत्रों द्वारा किया जाना, ना केवल एक चुनौतिपूर्ण परियोजना रहा है, बल्कि सदैव के लिए एक आत्मिक
संतुष्टि वाला सफल अनुभव भी रहेगा।
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- December 16, 2020
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